Quantcast
Channel: Tez News
Viewing all articles
Browse latest Browse all 10573

खंडवा बुरहानपुर में निर्दलीय पलट सकते है परिणाम !

$
0
0

खंडवा बुरहानपुर में निर्दलीय पलट सकते है परिणाम ! Tez News.


खंडवा : चुनाव में निर्दलीयों की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है ? अमूमन उनकी औकात 2-4 हज़ार वोट से ज्यादा समझी नहीं जाती, ज़मानत ज़ब्त कराने वाले जगहंसाई का पात्र उन्हें समझा जाता है। लेकिन यह महज़ हमारी धारणा है वे कई बार चुनाव परिणाम प्रभावित करने की क्षमता रखते है। मेरे मन में भी यह सवाल कौंध रहा था कि निर्दलियो को चुनाव में कितनी गंभीरता से लिया जाये तो सोचा क्यों न खण्डवा का ही पूरा चुनावी इतिहास खंगाल कर देखा जाये। जो तथ्य सामने आये वे चौकाने वाले तो है ही ,हमारी धारणा भी बदलने की ताकत रखते है।

सन 1952 से 2013 तक खण्डवा विधानसभा क्षेत्र में एक उपचुनाव सहित कुल 15 चुनावो में अब तक कुल 36 निर्दलीय प्रत्यशियों ने अपनी किस्मत आजमाई लेकिन कोई जीतना तो दूर अपनी जमानत तक बचा पाया। आजादी के बाद सबसे पहले सन 1952 के विधानसभा चुनाव में कुल 6 प्रत्याशी थे जिसमे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अलावा दो निर्दलीय राजसिंह शिवनाथ सिंह (14601 मत )पावजी रामचंद्र (4807 मत) प्राप्त किये। कॉग्रेस के भगवंत राव मंडलोई ने निर्दलीय राजसिंह शिवनाथ सिंह को 5130 मतों से परास्त किया था। इसके बाद वर्ष 1957 मे 1 निर्दलीय ने नामांकन भरा ,इसके बाद 1962 ,1967 और 1972 के तीनो आम चुनाव में एक भी निर्दलीय चुनाव मैदान में नहीं था। वर्ष 1977 में फिर 3 निर्दलीयों ने किस्मत आजमाई लेकिन वे महज़ 200 -300 वोटो में ही सिमट गए।

1993 में सर्वाधिक 10 निर्दलीय

वर्ष 1980 में इनकी संख्या बढ़कर 4 हुई जिसमे शम्सुद्दीन (मम्मू) ने एक हजार का आंकड़ा पार किया शेष तीन अंको में सिमट गए। वर्ष 1985 में निर्दलीयों की संख्या बढ़कर 6 हो गई लेकिन इसमें कोई भी पांच सौ वोट भी हासिल नहीं कर सका ,एक प्रत्याशी तो 89 मतों पर ही अटक गया। वर्ष 1990 में इनकी संख्या घटकर 5 हो गई वे सब भी पांच सौ मतों से भी बहुत कम में सिमट गए। इसके बावजूद निर्दलीयों का उत्साह 1993 में चरम पर पहुंचा जब सर्वाधिक 10 निर्दलीय चुनाव मैदान में थे। इसमें सबसे ज्यादा हल्ला मचाने वाले निर्दलीय फारुख को अधिकतम 829 वोट और मोहनलाल 63 वोट ही पा सके। इसके बाद निर्दलीयों का थोड़ा बुखार उतरा 1997 के उपचुनाव फिर में एक भी निर्दलीय मतपत्र में भी नजर नहीं आया।

डाक मत भी बदल सकते है परिणाम….

वर्ष 1998 के आम चुनाव में सिर्फ 2 निर्दलीय थे लेकिन वे बहुत महत्वपूर्ण साबित हुए। इसमें एक तो कांग्रेस के ही बागी वीरेंद्र मिश्र पतंग चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में डट गए उन्होंने 7879 मत हासिल किये ,खुद की जमानत भी नहीं बचा सके लेकिन कांग्रेस के जीत के बहुत करीब पहुँच चुके अवधेश सिसौदिया को ले डूबे। इस चुनाव ने निर्दलीयों की भूमिका को पहली बार रेखांकित कर दिया।

इस चुनाव में डाक मतों की भी कीमत पता चली और नेताओ को एक-एक वोट का मूल्य समझा दिया। इस चुनाव में कांग्रेस के अवधेश सिसोदिया ने भाजपा के हुकुमचंद यादव को मतों की गिनती पूर्ण होने पर 32 मतों से परास्त कर चुके थे लेकिन जब इसमें डाक मतों को जोड़ा गया तो परिणाम उलट गया और वे सिर्फ 71 मतों से पराजित हो गए। हुकुमचंद यादव को इन डाक मतों ने नया जीवनदान दिया। जाहिर है ऐसी कशमश वाली स्थिति में निर्दलीय प्रत्याशी शेख शकील को मिले 404 मत किस तरह परिणाम बदल सकते थे यह समझा जा सकता है।

निर्दलीय भारी रहे है क्षेत्रीय दलों पर भी….

इसके बाद वर्ष 2003 में सिर्फ एक निर्दलीय मैदान में उतरा ,मांगीलाल कानूनगो निर्दलीय होकर भी शिवसेना और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी से भारी रहे जिन्होंने 1988 मत हासिल किये जो इन दोनों दलों को प्राप्त मतों से दुगुने से ज्यादा थे। इसके बाद 2008 में परिसीमन के बाद खण्डवा सीट सामान्य से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई ,इसमें भी 2 निर्दलीय थे , स्वरूपचंद चाकरे ने 2077 वोट हासिल किये जबकि लोक जनशक्ति पार्टी ,गोंडवाना मुक्ति सेना 500 वोट भी हासिल नहीं कर सकी।

बहुजन समाज पार्टी के रामलाल ने जरूर 7179 वोट और भारतीय जनशक्ति पार्टी के राजाराम पाटिल ने 3692 वोट हासिल किये लेकिन जमानत कोई नहीं बचा सका। इसमें भाजपा के देवेंद्र वर्मा ने कॉग्रेस के दिनेश सोनकर को 25868 मतों से परास्त किया। वर्ष 2013 के चुनाव में फिर किसी निर्दलीय ने हिम्मत नहीं जुटाई जिससे मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में सीधा हुआ। भाजपा के देवेंद्र वर्मा ने कॉग्रेस के मोहन ढाकसे को 34071 मतों के सर्वाधिक अंतर् से परास्त किया। इसमें बहुजन समाज पार्टी के दिनेश राठौर 2778 मत ही पा सके।

और मौजूदा परिदृश्य …

अब मौजूदा परिदृश्य पर नज़र डालें तो खण्डवा विधानसभा वर्ष 2018 में कुल 7 प्रत्याशी मैदान में है जिसमे 3 निर्दलीय है इनमे कांग्रेस और भाजपा के एक-एक बागी भी शामिल है। इन बागियों को कम आंकना स्थापित पार्टियों को महंगा साबित हो सकता है। कांग्रेस के बागी राजकुमार कैथवास कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकते है तो भाजपा के बागी कौशल मेहरा ने भाजपा में हिंदुत्व का खौफ पैदा कर दिया है।

भाजपा के रणनीतिकारों को सोचना था कि कौशल मेहरा का बने रहना उनके लिए इस रूप में फायदेमंद होगा कि जो देवेन्द्र वर्मा से रुष्ट है वे मेहरा को वोट देंगे तो वे बड़े नुकसान से बच जायेंगे ,अन्यथा ये वोट कांग्रेस के खाते में जाकर दुगुना नुकसान करते।

लेकिन यह रणनीति ही अब भाजपा के गले की हड्डी बन गई है ,वर्मा अपनी उदार छवि बनाने के चक्कर में उग्रपंथियो से दूर हुए लेकिन जब हिन्दू वोटो को सम्हालने के चक्कर में उन्होंने फायरब्रांड हिन्दू नेता ,उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलाया तो उनका इंजेक्शन भी उल्टा असर कर गया।
योगी के भाषणों से हिन्दू भाजपा के पक्ष में एकजुट होगा या नहीं इस पर कुछ कहना मुश्किल है लेकिन उनके तीखे लहज़े ने मुस्लिम समुदाय को जरूर भाजपा से छिटका दिया है जो विधायक वर्मा की उदारवादी छवि के चलते उनसे जुड़ने लगा था। कांग्रेस अपने कमजोर प्रचार अभियान के बावजूद इसलिए उम्मीदे पाले बैठी है कि भाजपा के बागी कौशल मेहरा ने यदि हिन्दू वोटो में तगड़ी सेंध लगा दी तो कांग्रेस का रास्ता काफी आसान हो जायेगा।

पंधाना और बुरहानपुर में भी यही हालात ….

तक़रीबन यही स्थिति कांग्रेस के लिए पंधाना में भी बन रही है जहाँ कांग्रेस की बागी रुपाली बारे सारे चुनावी समीकरण उलटने की स्थिति में आ गई है। उधर बुरहानपुर में कांग्रेस के बागी ठाकुर सुरेन्द्र सिंह ने हवा का रुख इस कदर बदला है कि यहाँ कांग्रेस तीसरे क्रम पर आ गई है यह सच्चाई अब कांग्रेसी ही दबे मुंह स्वीकारने लगे है। और फिर ठाकुर शिवकुमार सिंह निर्दलीय चुनाव जीत भी चुके है और ऐसा ही चमत्कार बुरहानपुर में स्वामी उमेश मुनि भी दिखा चुके है।क्या इन तथ्यों को झुठलाया जा सकता है ???
रिपोर्ट – जय नागड़ा

खंडवा बुरहानपुर में निर्दलीय पलट सकते है परिणाम ! Tez News.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 10573

Trending Articles