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सरोगेसी बिल कैबिनेट में पास, जानिए सरोगेसी से जुड़ी खास बातें

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नई दिल्ली- सरोगेसी को लेकर लंबे समय से चल रही बहस पर सरकार ने अपना रुख स्पष्‍ट कर दिया है। इस संबंध में कैबिनेट ने आज सरोगेसी बिल पास कर दिया। जिसमें साफ कर दिया गया है कि विदेशियों को भारत में किराए की कोख नहीं मिल पाएगी। इसके अलावा भारतीय दंपतियों के लिए भी अब सरोगेसी का सहारा लेना मुश्किल होगा।

बिल के अनुसार अब हर कोई बच्चे की चाहत में किराए की कोख नहीं ले पाएगा। हालांकि सरकार ने इस पर पाबंदी तो नहीं लगाई लेकिन कुछ शर्तों के साथ छूट दी है। बिल के अनुसार अब कोई व्यवसायिक उपयोग के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर पाएगा।

सरोगेसी की छूट केवल एक शर्त पर ही दी जाएगी जिसमें दंपति पूरी तरह बांझपन की बात सिद्ध कर दे। उन परिस्थितियों में केवल परोपकारी उद्देश्य के लिए ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

सरोगेसी मदर के लिए नियम तय कर दिया गया है, जिसमें केवल नजदीकी रिश्तेदार ही सरोगेट मदर बन सकती है। हालांकि नजदीकी रिश्तेदार को इसमें परिभाषित नहीं किया गया है। सरकार ने विदेशियों को भारत में आकर सरोगेसी मदर हायर करने के चलन पर भी अब रोक लगा दी है। पूर्व में विदेश मंत्रालय की ओर से इस संबंध में काफी शिकायतें मिली थीं। प्रस्तावित कानून के अनुसार केवल भारतीय दंपति को‌ जिनकी शादी को पांच साल हो चुके हैं उन्हें ही सरोगेसी की छूट मिलेगी।

ड्राफ्ट बिल में सरोगेसी मदर के अधिकारों की रक्षा पर सरकार ने विशेष ध्यान दिया है। इसके साथ ही सरकार ने नए सरोगेसी क्लीनिक पर भी रोक लगा दी है, ऐसे मामलों पर निगाह रखने के लिए अब एक बोर्ड का भी गठन किया जाएगा।

बता दें कि सरकार ने कुछ दिन पहले संसद में भी कहा था कि सरोगेसी के संबंध में नया कानून अभी प्रस्तावित है जो पूरी प्रक्रिया को वैधानिक और पारदर्शी बनाएगा। इस जल्द ही सदन के सामने लाया जा सकता है। इस बिल को शीतकालीन सत्र में संसद पेश किया जा सकता है।

क्या है सरोगेसी –
सरोगेसी एक महिला और एक दंपति के बीच का एक एग्रीमेंट है, जो अपना खुद का बच्चा चाहता है। सामान्य शब्दों में सरोगेसी का मतलब है कि बच्चे के जन्म तक एक महिला की ‘किराए की कोख।

आमतौर पर सरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपति को बच्चे को जन्‍म देने में कठिनाई आ रही हो। बार-बार गर्भपत हो रहा हो या फिर बार-बार आईवीएफ तकनीक फेल हो रही है। जो महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्‍म देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है।

क्यों पड़ी सरोगेसी बिल की जरूरत
सरकार ने हाल में स्वीकार किया था कि वर्तमान में किराये की कोख संबंधी मामलों को नियन्त्रित करने के लिए कोई वैधानिक तंत्र नहीं होने के चलते ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किराये की कोख के जरिये गर्भधारण के मामले हुए जिसमें शरारती तत्वों द्वारा महिलाओं के संभावित शोषण की आशंका रहती है।

कहां से मिलती है सरोगेट मदर-
सरोगेसी कुछ विशेष एजेंसी द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। इन एजेंजिस को आर्ट क्लीनिक कहा जाता है जो कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की गाइडलाइंस फॉलो करती है। सरोगेसी का एक एग्रीमेंट बनवाया जाता है जिसे दो अजनबियों से हस्ताक्षर करवाएं जाते हैं जो कभी नहीं मिले। सरोगेट परिवार का सदस्य या दोस्त भी हो सकता है।

सरोगेसी के लिए भारत क्यों है पॉपुलर –
भारत में किराए की कोख लेने का खर्चा यानी सरोगेसी का खर्चा अन्य देशों से कई गुना कम है और साथ भारत में ऐसी बहुत सी महिलाएं उपलब्ध है जो सरोगेट मदर बनने को आसानी से तैयार हो जाती हैं। गर्भवती होने से लेकर डिलीवरी तक महिलाओं की अच्छी तरह से देखभाल तो होती ही है साथ ही उन्हें अच्छी खासी रकम भी दी जाती है।

इन स्थितियों में बेहतर विकल्प है सरोगेसी –
आईवीएफ उपचार फेल हो गया हो।
बार-बार गर्भपात हो रहा हो।
भ्रूण आरोपण उपचार की विफलता के बाद।
गर्भ में कोई विकृति होने पर।
गर्भाशय या श्रोणि विकार होने पर।
दिल की खतरनाक बीमारियां होने पर। जिगर की बीमारी या उच्च रक्तचाप होने पर या उस स्थिति में जब गर्भावस्था के दौरान महिला को गंभीर हेल्थ प्रॉब्लम होने का डर हो।
गर्भाशय के अभाव में।
यूट्रस का दुर्बल होने की स्थिति में।

क्‍या कहना है एक्‍सपर्ट का-
एससीआई हेल्थ केयर, आईएसआईएस हॉस्पीटल की आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ. शिवानी सचदेव से सरोगेसी को लेकर लंबी बातचीत के दौरान डॉ. शिवानी का कहना है कि सरोगेसी बहुत महंगी प्रक्रिया है। इसके पूरे प्रॉसिजर में 10-15 लाख रूपए आसानी से लग जाते हैं।

वे आगे कहती हैं कि सरोगेसी का विकल्प चुनना गलत नहीं हैं लेकिन आपको पूरी जांच पड़ताल करनी चाहिए कि आप किस डॉक्टर के पास जा रहे हैं। वहां कौन सी सुविधाएं हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की वेबसाइट पर मान्यता प्राप्त क्लीनिक और डॉक्टर्स की सूची है। इन्हीं डॉक्टर्स के पास ही जाना चाहिए ना कि किसी भी स्थानीय क्लीनिक में जाना चाहिए। [एजेंसी]




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